देर से ही सही, चुद तो गई

शर्मा जी और हम पास पास ही रहते थे। दोनों के ही सरकारी मकान थे। मेरे पति और शर्मा जी एक ही कार्यालय में कार्य करते थे। शर्मा जी का भाई पास ही में एक किराये के मकान में रहता था और एक प्राईवेट कम्पनी में काम करता था। पति के ऑफ़िस जाते ही शर्माजी की पत्नी मेरे घर या मैं उसके घर आते जाते थे। शादी के बाद हम बीवियाँ पति से तो चुदती ही रहती हैं, पर मन तो करता है ना कि कोई नया लण्ड भी तो चूत में घुसे। शादी यानी कि लण्ड के चूत में घुसाने का लाईसेन्स ... चूत का पर्दा तो चुदते ही फ़ट जाता है फिर चाहे कोई भी लण्ड हो, उसका स्वागत कर सकते हो। यानि हम बीवियो को शादी के बाद लण्ड लेने में छूट मिल जाती है।
शर्मा जी का भाई पप्पू ... शर्मा जी के जाते ही आ जाता था फिर वो काफ़ी देर तक वहीं रहता था। उसकी ड्यूटी दिन को दो बजे से चालू होती थी, सो खाना उन्हीं के यहां खाता था। पप्पू मुझे बहुत ही पसन्द करता था, करेगा क्यो नहीं ... मैं भरपूर जवान जो थी ... दुबली पतली, लम्बी, सुन्दर सी थी। मै अधिकतर घर पर ढीला ढाला सा पजामा पहना करती थी और ऊपर एक कुर्ता। मेरे उत्तेजना से भरपूर दोनों गोल गोल सुन्दर चूतड़ पप्पू को बहुत ही भाते थे। पप्पू का काम था कि पीछे से मेरे उभरे हुए चूतड़ो की चाल देखना और बस मेरे कुर्ते में झांकते रहना और उसकी भरपूर कोशिश यही रहती थी कि मेरे कहीं से भी चूंचियों के दर्शन हो जाये। मैं यह सब समझती थी और उसका मनोरंजन उसे अपनी चूंचिया दिखा कर करती थी। इससे मेरा भी मनोरंजन हो जाता था। शरम तो बहुत आती थी पर क्या करुँ यह चूत है ही ऐसी चीज़ कि कोई लण्ड जहाँ नजर आया और फ़ड़क उठी।
मुझे अब धीरे धीरे पप्पू और नीता पर शक होने लगा था कि उन दोनों के बीच चुदाई का सम्बन्ध है ... पर उन्हें कैसे पकड़ें ... । एक बार उन्हें पकड़ लिया तो मैं अपने आप को चुदा लूँ ।
मैं एक बार पप्पू के आते ही चुपके से उसके घर में चली आई और बेडरूम वाली खिड़की से अन्दर का जायजा लिया। मेरा शक एकदम सही निकला। दोनों आलिंगनबद्ध थे और एक दूसरे को चूम रहे थे। मेरे जिस्म में झुरझुरी सी आ गई। दिल में वासना जागने लगी। मैं आवाज लगाती हुई अन्दर चली गई, वो दोनों ही दूसरे काम में लग गये थे। मैने भी अब अपने जलवे दिखाने की सोची और पप्पू को अपने लिये भी पटाने था, उसकी योजना बनाने लगी। आज मैंने उसे अपने चूतड़ भी उभार कर दिखाये, चूंचियो के दर्शन भी करा दिये और बड़ी समझदारी से उसे एक इशारा भी दिया कि मुझे पटा लो। पता नहीं मेरे इशारे ने कितना काम किया ?
अगले ही दिन मैने नीता और पप्पू को अपने ही घर की खिड़की से उन्हें लिपटे हुए देख लिया, मैंने खिड़की के पास जाकर और गौर से देखा, पप्पू नीता के बोबे दबा रहा था। मेरी चूत एकाएक फ़ड़क गई। लगा शायद मुझे ही दिखाने के लिये ये सब किया था। मैं उत्साहित हो गई। मुझे लगा कि मुझे वहां जाकर मुझे कोशिश करनी चाहिये, शायद काम बन जाये। मैंने घर का काम जल्दी से समाप्त किया और नीता के घर में आ गई।
नीता से बातचीत में मैने उससे कहा,"नीता, यार आजकल मेरा मन बहुत ही भटक रहा है, दिल को चैन नहीं आ रहा है !" मैंने उसे अपने मन की बात खोलने की कोशिश की।
"मुझे पता है, ऐसा जब होता है जब मन में कोई इच्छा होती है !" नीता ने मुझे उकसाया, मैं उत्साहित हो गई।
"हाँ, मुझे ऐसा लगता है कि कोई बस आकर मेरे ऊपर चढ़ जाये और बस मेरा कल्याण कर दे !" उसे मैने एक स्पष्ट इशारा दिया।
"ओह हो ... यानि नीचे की बैचेनी है ... अनिल है तो सही ...! " उसने इशारा समझा और मुझे परखने लगी।
"नहीं कोई और चाहिये ... नया !" मैने उसे इशारा किया। वो सब समझ चुकी थी, सीधे मेरे दिल पर चोट की,"पप्पू चलेगा क्या ...? "
उसने ज्योंही पूछा, मैने अपनी निगाहें शरमा कर झुका ली, हां में सर हिलाया।
"अरी मुँह से तो बोल ना मोना ... " मै शरमा कर भाग गई।
दिन को मैं वापस गई ... तो सोफ़े पर पप्पू नीता की चूंचियों से खेल रहा था, उसके कुर्ते का एक भाग ऊपर करके उसे दबा रहा था। नीता का मुँह मेरी तरफ़ था। मैं जैसे ही दरवाजे पर आई नीता में मुझे देख लिया और हाथ से इशारा कर दिया, कि बस देख लो। पप्पू को नहीं बताया कि मैं दरवाजे पर हूँ। उसने पप्पू का सर अपनी चूंचियो पर दबा लिया और मुझे देख कर मुस्करा उठी। और अपनी चूंचियाँ भचक भचक करके उसके मुँह में मारने लगी। जैसे पप्पू दूध पी रहा हो। अचानक पप्पू ने मेरी तरफ़ देखा।
"क्या हो रहा है जनाब ... " मैने कटाक्ष किया।
"ये पप्पू मुझे प्यार बहुत करता है ना, इसलिये मुझसे चिपका ही रहता है।" नीता ने बनावटी हंसी हंस दी।
"पप्पू जी, हमें भी तो कभी करके देखो ना ... " मैने पप्पू को सीधे कहा।
"मोना जी ... आप तो मजाक करती हैं !"
"ना जी , मजाक कैसा ... अच्छा एक बार और नीता को प्यार करके दिखा दो ना !" मेरी नजरें जैसे उसे न्योता दे रही थी।
नीता मुस्करा उठी और उसने पप्पू को प्यार से चूम लिया। पप्पू ने भी नीता को चुम्मा दिया और फिर पप्पू के होंठ नीता के होंठ से मिल गये। पप्पू का एक हाथ नीता के स्तनों पर आ गया और दूसरा उसकी सेक्सी जांघ पर आ गया। मैं यह सीन देख कर पसीने पसीने हो गई। मुझे उम्मीद नहीं थी, मुझे खोलने के लिये वो मेरे सामने ही मस्ती करने लगेगी। मेरे हाथ पांव जैसे कांपने लगे। वासना के डोरे मेरी आखो में खिंचने लगे। नीता ने अब मेरे सामने ही पप्पू का लण्ड पेण्ट के ऊपर से थाम लिया। उसके मोटे लण्ड का शेप उसके हाथों में नजर आने लगा।
"पप्पू , बस भई बहुत प्यार हो गया ... अपनी दूसरी भाभी को भूल गया क्या ... ?" मेरी आवाज वासना से भर उठी थी।
"देख ना मोना, मुझसे कितना प्यार करता है ये ... ... बस मुझे छोड़ता ही नहीं " नीता ने मुझे आंख मारी, और उसका सलोना लण्ड हाथों में कस लिया। मैं तो वैसे भी पिघलती जा रही थी।
"मुझे भी तो एक बार प्यार करले ना !" मेरे मुख से निकल पड़ा ... बिलकुल ऐसे ही ...
"मोना भाभी ... आप तो बहुत ही नाजुक हैं, आओ यहाँ बैठो ... प्यार करने से तो दिल खुश हो जाता है !" उसे मेरा हाल मालूम हो चुका था। मेरी चूत गीली हो चुकी थी। मैं उसके पास बैठ गई। वो मेरे पास आ गया और गहरी नजरों से मुझे निहारने लगा, आंखो आंखो में सेक्सी इशारे होने लगे, मैं कभी तिरछी नजर से उसे देखती कभी लण्ड की ओर इशारा करती। कभी चूंची उभारती और कभी आंख मारती। हमारी हालत देख कर नीता कह उठी,"अच्छा मैं चाय बना कर लाती हूं ... पप्पू मेरी सहेली है ये ! प्यार अच्छे से करना ... !" नीता ने मेरे हाथ दबाते हुये कहा।
यानि अब मुझे एक नया, ताज़ा लण्ड मिलने वाला था। नीता ने मुझे बहुत ही प्यार से पप्पू को मेरे लिये तैयार कर लिया था। पप्पू की बाहें अब मेरे गले और कमर के इर्द गिर्द लिपट गई। मेरा जिस्म डोल उठा। चूंचियाँ दबने के लिये मचल उठी। मेरे और उसके होंठ चिपक गये। उसके होंठो पर प्यार करने का अन्दाज बड़ा मोहक था। कुछ क्षणो में मेरे बोबे दब गये। मेरे मुख से आह निकल गई। जिस्म में वासना का उबाल आ रहा था। उसके हाथ मेरे कुर्ते के अन्दर पहुंच गये थे। मेरी चूंचियो के निपल को उसने अपनी अंगुलियो से मलना चालू कर दिया। मैने उसका लण्ड पेण्ट के ऊपर से थाम लिया। उसकी पेण्ट की ज़िप खींच कर खोल दी और उसका कड़कता लण्ड खींच कर बाहर निकाल दिया। उसका सुपाड़ा को चमड़ी खींच कर बाहर निकाल दिया।
"चाय आ गई है ... चलो नाश्ता कर लो ... अरे ये क्या ... प्यार करने को कहा था ... मोना ये क्या करने लगी ... " पप्पू के सुपाड़े को देख कर नीता ने अपना व्यंग का तीर छोड़ा।
मैं तुरन्त सम्भल कर बैठ गई। शरमा कर नीची नजरें कर ली।मैने धीरे से नीता की ओर देखा और मुँह छुपा लिया।
"बस बस , चाय मैं दे देती हूँ ... " नीता ने हंस कर चाय दे दी।
"पप्पू अपने छोटे पप्पू को तो भीतर कर लो ...! " पप्पू हंस पड़ा और मैं शर्म से झेंप गई।
मैंने जल्दी से शरम के मारे चाय समाप्त ही और उठ कर जाने लगी। नीता ने मुझे पकड़ लिया बोली,"कहां चली गोरी, तेरी चूत में तो आग लगी थी ना ... आजा अब मौका है तो बुझा ले ... तुझे एक बात बताऊँ !"
मैंने प्रश्नवाचक निगाहो से उसे देखा।
"तुझे जब से पप्पू ने देखा है ना, तब इसका लन्ड फ़ड़फ़ड़ा रहा है, यानि तूने मुझे कहा, उससे भी पहले !"
"चल हट ... झूठ बोलती है !"
"हां री ... तेरे को पटाने के लिये हम ऐसे ही एक्शन करते थे कि तुझे शक हो जाये ... और तू हमें छुप छुप कर देखे !"
"हाय रे ! मुझे तो तुम दोनों ने बेवकूफ़ बनाया ... !" मुझे उसके दिमाग की तारीफ़ करनी पड़ी।
"जब तेरी चूत में आग लग गई तो तुझे चोदना और भी आसान हो गया और देख अब तू चुदने वाली है !"
मैने भागने की सोची पर पर पप्पू ने मुझे दबोच लिया और बिस्तर पर पटक दिया। मैं बिना वजह उसकी बाहों में कसमसाने लगी। दिल तो कर रहा कि हाय जालिम, इतनी देर क्यूँ लगा रहे हो? चोद डालो ना।
"हाय पप्पू, मुझे अब चोद डालोगे ... ?" मेरे मुख से दिल की बात निकल पड़ी।
"हां मेरी मोना भाभी ... मुझसे रहा नहीं जा रहा है ...! आपकी जगह नीता भाभी को चोद चोद कर उनकी चटनी बना डाली थी ... अब तुम मिल ही गई हो ... तो कैसे छोड़ दूं?" उसका शिकायती स्वर था।
नीता ने लपक कर मेरे हाथ पकड़ लिये। पप्पू ने मेरे बोबे भींच दिये, और मेरे ऊपर चढ़ गया।
"मोना ... बुझा ले अपनी प्यास मोना ... नये लण्ड से ... मुझे तो ये पप्पू रोज ही जम कर चोदता है !" नीता वासना से भरे हुये स्वर में बोली। उसकी आंखो में भी गुलाबी डोरे उभर आये थे।
"नीता ... हाय रे ! मुझे बहुत शरम आ रही है ... तू जा ना यहाँ से ... मैं चुदा लूंगी !" मैंने मुँह छुपाते हुये कहा।
"ना ... ना रे ... मुझे भी तो चुदना है ना ... पप्पू अपना लौड़ा निकाल ना ... चोद डाल मेरी सहेली को !" नीता की आवाज वासना में डूबी हुई थी।
"हाथ छोड़, मैं निकाल लूंगी इसका लौड़ा ... " मैंने अपना हाथ नीता से छुड़वाया और उसकी पेण्ट का हुक खोल दिया। पप्पू ने अपनी पेण्ट उतार दी। मैने उसका लण्ड पकड़ कर अपने मुँह तक खींचा, उसने अपना कड़क लण्ड आगे आ कर मेरे मुँह में डाल दिया।
"तू उधर देख ना नीता ... मुझे मन की करने दे ना ... !"
" कर ले ना यार ... लण्ड चूसना है ना, तो चूस ले ... मैं तेरी चूत का मजा ले लेती हूँ ... "
" नहीं, मत कर नीता ... प्लीज ...! "
नीता ने मेरी एक नहीं सुनी और जल्दी ही मेरी चूत पर उसके होंठ जम गये। मैंने अपने पांव चौड़ा दिये और चूत खोल दी। मेरी छाती पर पप्पू बैठा था और मेरे मुँह में उसका लण्ड घुसा था। उधर मेरी चूत नीता के कब्जे में आ चुकी थी। वो मेरे चूत के दाने को जीभ से चाट चाट कर मुझे मदहोश कर रही थी। अचानक नीता ने अपनी एक अंगुली मेरी गान्ड में घुसेड़ दी। मुझे असीम आनन्द आने लगा।
पप्पू के लण्ड के सुपाड़े के छल्ले को मैंने कस के चूस लिया और वो एक बारगी तो तड़प उठा। सुपाड़ा फूल कर लाल टमाटर की तरह हो गया था। उसने नीता को हटाया और स्वयं मेरे ऊपर लेट गया। उसका फ़ूला हुआ सुपाड़ा मेरी चूत पर रेंगने लगा था। मेरी चूत ऊपर उठ कर लण्ड को लीलना चाह रही थी। ज्यादा इन्तज़ार नहीं करना पड़ा मुझे ... वो अपने आप निशाने पर मेरी चिकनी चूत से टकरा गया ... और हाय रेऽऽऽऽऽ ... उसका मोटा लण्ड मेरी चूत में घुस पड़ा। मैं सिसक उठी। चूत और ऊपर उठ गई। मेरा बदन कसक उठा। शरीर में एक मीठी सी लहर दौड़ गई।
"मेरे भगवान ... आह ... कितना मजा आ रहा है ... । और मैने भी अपनी चूत को ऊपर उठा कर पूरा जोर लगा दिया। लण्ड सभी हदों को पार करता हुआ ... मेरे चूत की तलहटी तक पहुंच गया था। लण्ड को मेरी चूत ने पूरा लील लिया था। अब मैं कुछ देर तक इसी तरह रह कर लौड़े का पूरा आनन्द लेना चाहती थी। सो मैंने उसे उसकी कमर को कस कर जकड़ लिया। लण्ड ने एक ठोकर और मारी और मेरी आंखे मस्ती में बंद हो गई। वो अपने लण्ड को जोर से चूत की गहराई में गड़ाने लगा था। मेरी चूत अपने आप अब थोड़ी थोड़ी लण्ड को घिसने लगी थी। तेज मीठी जलन होने लगी थी। जैसे चूत में आग लग गई हो। मेरी सिसकारियाँ उभरने लगी। मुझे गाण्ड में कुछ मोटा मोटा सा लण्ड जैसा लगा, ... आह रे ये क्या ... नीता ने मेरी गाण्ड में तेल लगा डिल्डो घुसा दिया था।
"रानी अब पूरा मजा ले ... ये तेरी गाण्ड में सुरसुरी करेगा ... चूत में लण्ड मजा देगा !" नीता ने मुझे पूरी तरह से अपने वश में कर लिया था।
" हाय मेरी नीता ... तूने तो आज मेरा दिल जीत लिया है ... तेरी जो मर्जी हो वो कर ... मुझे चाहे मार डाल ... !" मैं स्वर्गीय आनन्द से विभोर हो उठी। मेरी चूत जल उठी, बदन वासना की तेज तरंगों में नहा उठा। जिस्म का कोना कोना मीठी सी वासना से जल उठा। मेरी गाण्ड में नीता बड़ी मेहनत के साथ डिल्डो पेल रही थी। मुझे दोनों ही पूरा शारीरिक वासना का सुख देने की कोशिश कर रहे थे। अब मैने अपने जिस्म को ढीला छोड़ दिया और धक्कों का मजा लेना चाहती थी। पप्पू की कमर को छोड़ते ही उसके चूतड़ उछल पड़े और मेरी ढीली चूत पर जम कर लण्ड को ठोकने लगा। साला लण्ड पूरी गहराई तक घुसता और बाहर आ जाता था। सुख से मैंने आंखें कस कर बंद कर ली। मेरी चूत भी फ़्री स्टाईल में उछल उछल कर उसका साथ देने लगी। जितनी जोर से वो धक्के मारता, मैं भी जवाब उतने ही जोश से तेज धक्का मार देती। इसी चक्कर में मेरे नसें खिंचने लगी ... जिस्म ऐंठने लगा ... सभी कुछ जैसे चूत से बाहर आ जाना चाहता हो ... मीठी सी जलन अब आग सी हो गई ... मैं झुलसने लगी ... जैसे जल गई ...
"आह पप्पू ... हरामी साला ... चुद गई ! हे मेरे मालिक ... गई मैं तो ... जोर लगा रे ... !"
उसके एक झटने ने अब मेरी आखिरी सांस भी निकाल दी ...
"ईईई ... आह्ह्ह्ह् ... निकला मेरा ... ऊईईईई ... पप्पू ... बस ऐसे ही चोदता रह ... मेरा पूरा निकल जाने दे ...! "
पर कहां ... वो तो धक्के मारते मारते ... खुद ही ढेर हो गया। और उसका माल निकल पड़ा। उसका वीर्य मेरी चूत में भरने लगा। नीता ने डिल्डो मेरी गान्ड से बाहर निकाल लिया। मैने दोनों हाथ बिस्तर पर फ़ैला लिये और जोर जोर से अपनी फ़ूली हुई सांसो को नियंत्रित करने लगी। पप्पू मेरे ऊपर से हट गया और नीता अब मुझे प्यार करने लगी ...
"मोना मेरी ... नये लण्ड का पूरा मजा आया ना ... मेरे पप्पू ने तुझे आनन्द दिया ना ... " नीता मुस्कराने लगी।
"नहीं नीता ... तेरा नहीं नहीं , अब तो वो मेरा भी पप्पू है" मैने भी अपनापन दिखाया।
पप्पू अब नीता के कपड़े उतारने में लगा था।
"हाय, मोना अब ये मुझे भी नहीं छोड़ने वाला है ... अब मैं चुदीऽऽऽऽ ... हाय !" नीता के मुँह से वासनाभरी आह निकल गई।
मैंने पप्पू की गाण्ड सहलाते हुये उसका लण्ड अपने मुंह में भर लिया। वो नीता की चूंचियां मसलने में लगा था। मेरी इच्छा अभी बाकी थी ... मेरी गाण्ड उदास हो चली थी कि अब ये नीता को चोदेगा तो वो दो बार झड़ जायेगा, फिर मेरी गाण्ड मारने जैस उसके लौड़े में दम रहेगा या नहीं। कुछ ही देर में पप्पू का लण्ड चूसने से वो फिर से तन्ना उठा, जैसे पप्पू मेरे मन की बात जान गया गया था। बोला,"नीता भाभी, मोना जी का काम तो निकल गया अब तो चली जायेगी, मेरा काम तो हुआ ही नहीं !"
"अच्छा, चल तू अपना काम पूरा कर ले ... फिर बाद में मुझे चोद देना ... बस ... !"
"क्या बात है ? कौन सा काम नीता ... ?" मैने जैसे अनजान बनते हुये कहा।
"बात ये है कि तेरे चूतड़ इसे बहुत पसन्द हैं ... तू जैसे ही मुड़ती है इसका लण्ड खड़ा हो जाता है ... !"
"हाय राम ... ऐसा मत कहो ... ।"
"हां सच ... अब ये तेरी गाण्ड मारना चाहता है ... प्लीज, चुदवा ले अपनी गाण्ड ... " नीता ने पप्पू की तरफ़ से कहा।
"मैं कैसे मानूं कि सच बोल रही है ... पप्पू ने तो कुछ कहा ही नहीं !" मैने शिकायत की।
"सच, मोना जी ... देखना मेरा लण्ड देखना आपकी गाण्ड में घुस कर कैसा खुश हो जायेगा।"
"तो चल खुश हो कर बता ... "
"आप कुतिया की तरह झुक जाईये फिर देखिये मैं कुत्ते की तरह आपकी गाण्ड मारूंगा !"
" हाय राम ... अच्छा ये देखो ... !" मैं कुत्ते की तरह बिस्तर पर झुक गई। मेरे दोनों चूतड़ कमल की तरह खिल गये। मेरी गोरी गोरी गाण्ड देखते ही उसके लण्ड ने सलामी मारी। दरार के बीच मेरे गाण्ड का कोमल फूल चमक उठा। जो पहले ही लण्ड खाने की लालसा में अन्दर बाहर सिकुड़ रहा था। पास पड़ी तेल की बोतल से पप्पू ने मेरे दरार के बीच नरम फ़ूल पर तेल की बूंदे टपका दी। उसका लाल सुपाड़ा गाण्ड के फ़ूल पर टिक गया और हल्के से जोर से ही गप से अन्दर घुस पड़ा।
"साली क्या गाण्ड है ... ! घुसते ही लण्ड पानी छोड़ने लगता है !" पप्पू ने एक आह भरी।
"नीता, हाय कितना नरम और प्यारा लण्ड है। तूने मुझे काश पहले बताया होता तो मैं इतना तो ना तरसती ... !"
"मोना, मेरी सहेली ... अब लण्ड खा ले ... देर ही सही, चुदी तो सही ... मजा आया ना !" नीता भी चुदासी सी मुझे देख रही थी। उसे भी चुदाने की लग रही थी। अब पप्पू का सब्र का बांध टूट चुका था, वो मेरी चूतड़ों पर मरता था ... उसका डण्डा मेरी गाण्ड को कस कर पीटना चाहता था, सो उसने अपनी कलाबाज़ी दिखानी चालू कर दी। उसका लम्बा लण्ड गाण्ड की गहराईयों को नापने लगा। मेरी गाण्ड में जबरदस्त झटके मारने लगा। मुझे तरावट आने लग गई। हल्की सी मीठी सी गुदगुदी एक बार फिर मुझे रंगीनियों की ओर ले चली। मेरे बोबे मसले जाने लगे।
नीता चुदाई की प्यास की मारी अपनी चूत को मेरे सामने ले आई और कातर नजरों से विनती की। मैंने उसकी टांगें मेरे मुँह के पास खींच ली और अपना मुँह उसकी चूत से चिपका लिया। मैं उसके बोबे पकड़ कर मसलने लगी। आलम ये था कि तीनो एक दूसरे पर दुश्मन की तरह जुटे हुये वो सब कुछ कर रहे थे कि किसी का माल बाहर निकल जाये। मेरी गण्ड पर लण्ड ऐसे मार रहा था कि जैसे उसका लण्ड किसी मोरी में सफ़ाई कर रहा हो। लण्ड जोर जोर से घुसेड़ कर वो मेरी गाण्ड चोद रहा था। गाण्ड में सुरसुरी से मीठी मीठी असहनीय सी गुदगुदी चलने लगी थी, अगर मेरी गाण्ड चूत की तरह झड़ जाती तो कितना मजा आता।
पर हुआ उल्टा ही ... मुझे पकड़ कर वो वासना भरी सीत्कार भरता हुआ गाण्ड के भीतर ही झड़ने लगा। मुझे निराशा सी होने लगी, शायद समझी थी कि ऐसे ही जिन्दगी भर गाण्ड चुदती रहे और मैं मस्ताती रहूँ। उधर नीता भी वासना की मारी झड़ने लगी और उसकी चूत ने पानी छोड़ दिया। पप्पू ने अपनी सारी मलाई मेरी गाण्ड में निकाल दी। उसका लण्ड सिकुड़ कर स्वत: ही बाहर निकल आया। वो वहीं बैठ गया और मैं चित्त पांव पसार कर औंधी लेट गई।
पप्पू भी अपनी बिखरी हुई सांसे समेटने लगा और सोफ़े पर जाकर धम से बैठ गया। मेरा काम हो चुका था। मैं आगे और पीछे से चुद चुकी थी। मैंने अपनी गाण्ड के छेद को तंग कर सिकोड़ लिया और झट से पजामा और टॉप पहन कर अपने घर भाग आई। नीता मुझे आवाज देती ही रह गई।
घर आकर मैं लेट गई और उसका वीर्य गाण्ड में रहे इसलिये उल्टी लेट गई। मेरे पजामें में वीर्य के धब्बे उभर आये थे। गाण्ड चिकनी और लसलसी हो गई थी पर मुझे एक अनोखा आनन्द आ रहा था। इसी आनन्द का लुफ़्त लेते हुये मेरी आंख जाने कब लग गई। पर नीता ने मुझे जगा दिया।
" ये क्या, जरा तेरा पजामा तो देख नीचे से पूरा गीला हो रहा है ... "
"ये पप्पू का वीर्य है रे ... जरा मजा तो लेने दे ... "
"उनके आने का समय हो रहा है ... मरना है क्या ... ?
मै चौंक गई, देखा तो पांच बज रहे थे ... ना तो खाना बनाया था और ना ही चाय ... नहाया धोया भी नहीं था ... सब कुछ छोड़ कर मैं नहाने भागी ... सोचा चुद तो कल लेंगे
... ये आनन्द तो रोज ले सकते हैं। पर कहीं उनको इसकी भनक भी लग गई तो फिर

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